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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बढ़ा रहा पापों की गठरी,
कहता पुण्य कमाता है।
अखबारों में ख़बरें देखो,
फ़ोटो भी छपवाता है।।
रक्तदान का बने वीडियो,
रक्त चूसता परदे में।
जाड़ों में कंबल बँटवाता,
केले बँटें मदरसे में।।
सड़क किनारे कोढ़ी के सँग,
छायाचित्र खिंचाता है।
बढ़ा रहा पापों की गठरी,
कहता पुण्य कमाता है।।
सेवक का शोषण नित करता,
नहीं समय से दे वेतन।
दृष्टि बुरी घर की बाई पर,
लेश नहीं उर में चेतन।।
आँख बचाए निज पत्नी की,
अधोवस्त्र दिलवाता है।
बढ़ा रहा पापों की गठरी,
कहता पुण्य कमाता है।।
धूल झोंक चख दुग्ध -पात्र में,
देखो भैंस दुही जाती।
शुद्ध दूध की कपट-कहानी,
रंग एक दिन दिखलाती।।
पानी से जो दाम कमाया,
पानी - सा बह जाता है।
बढ़ा रहा पापों की गठरी,
कहता पुण्य कमाता है।।
गर्दभ - लीद मिली धनिए में,
धनिया ही कहलाती है।
हल्दी,मिर्च, मसालों में जब,
सब कलई खुल जाती है।।
खोवा में मैदा ,रिफाइंड का,
मेल नहीं छिप पाता है।
बढ़ा रहा पापों की गठरी,
कहता पुण्य कमाता है।।
जिसको जग भगवान मानता,
बना कसाई काट रहा।
ब्लैकमेल कर लूट मचाई,
रक्त मनुज का चाट रहा।।
नर्स,चिकित्सक वस्त्र बगबगे,
पल भर नहीं लजाता है।
बढ़ा रहा पापों की गठरी ,
कहता पुण्य कमाता है।।
मृत मानव का कफ़न खींच कर,
दूकानों पर बेच रहा।
देख मृतक के परिजन -आँसू,
नहीं पिघल तव हृदय बहा!!
ऐम्बुलेंस का चालक कपटी,
प्राणवायु हटवाता है।
बढ़ा रहा पापों की गठरी ,
कहता पुण्य कमाता है।।
मान आपदा को शुभ अवसर,
नर- पिशाच नर बना यहाँ।
रक्त,माँस, धन हज़म कर रहा
सत्य, शिवम अब शेष कहाँ?
'शुभम'आदमी का अरि नर ही
शव पर सेज सजाता है।
बढ़ा रहा पापों की गठरी,
कहता पुण्य कमाता है।।
🪴 शुभमस्तु !
०१.०६.२०२१◆१.००पत नम मार्तण्डस्य।
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