राजनीति में कोई किसी का स्थाई न तो मित्र होता है और न शत्रु ही होता है।यहां सांप और नेवले की भी दोस्ती होती है ।हो रही है , होती थी और होगी। इसलिए वे अनुयायी, अनुगामी और आदरणीय पिछलग्गू कितने बुद्धिमान हैं , जो इनके पीछे अपने प्राणों का बलिदान भी करने में चूकते नहीं । ऐसी कृतज्ञता धन्यवाद के योग्य है। आखिर हम अपने विवेक का इस्तेमाल करना कब सीखेंगे। कब तक अंधे बनकर इनके पीछे झंडा ऊँचा करते रहेंगे । शायद इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि हम जरूरत से ज्यादा स्वार्थी हो गए हैं । जिसका यह भी भरोसा नही कि वह शाम से सुबह तक कहाँ होगा। टिकिट मिल जाए तो वही दल भगवान है, और न मिली तो तुरत ही पलायन है। इसलिए आज सभी सम्माननीय नागरिकों का यह दायित्व है कि अन्धे न बनें। सोच -समझ कर ही अनुगामी बनें । राजनीति का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि हम अपने चरित्र भी बेच दें।एक विवेकी नागरिक की भूमिका अदा करें । जाति, क्षेत्र ,धर्म आदि समस्त वादों से ऊपर उठकर मतदान करें । राष्ट्र निर्माण का यह पावन यज्ञ है, मतदान अवश्य करें पर बहुत सोच समझकर ।देश के अच्छे और सच्चे नागरिक ही श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।
शुभमस्तु
- डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
शुभमस्तु
- डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें