शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

फिर से आ जाओ महामना

फिर से आ जाओ महामना!
भारतमाता    अकुलाती  है।
प्रिय अटल बिहारी कहाँ गए
रो रोकर अश्रु  बहाती  है ।।

ये नियम प्रकृति का शाश्वत है
जो आता   है    वो   जाता है।
सब  जानबूझ   कर मन  मेरा
तव यादों  में   खो जाता है।।

तुम जननायक! तुम महामना!!
तुम महाकवि !    तुम देशरत्न!!
जन -जन के  उर  में   बसे  हुए
निकलें कैसे कर   लाख  यत्न।।

सारा   जग     सूना -  सूना   है 
तुम कहाँ गए ! तुम किधर गए!
किस लोक गए   हो  बतलाओ
आँसू  नयनों    से  रहे    ढहे।।

जन्म - मृत्यु  पर  वश किसका
बीत गई    वह    घड़ी    बड़ी।
जब फहरा राष्ट्रध्वज फर -फर
स्वातंत्रय दिवस की महा घड़ी।।

तजकर तन भी झुकने न दिया
भारत माँ  का    ऊँचा  ललाट।
तुम  देशभक्त   सच्चे    तपसी 
व्यक्तित्व आपका   था विराट।।

 धनि   धन्य   मृत्युदेवी   तू   है 
एक दिन की कठिन प्रतीक्षा थी।
भारत के सपूत   की जननी को
निज कृपा -करों की भिक्षा दी।।

तुम मरे   नहीं    बदला   शरीर 
फिर से इस भू पर आ   जाओ।
पीड़ित कराहती    है    जननी
पुनि धन्य कोख को कर जाओ।।

पहले    अंग्रेजों    का    गुलाम
अब अपने ही  शोषक -चूषक ।
क्षण प्रति क्षण कुतर रहे भारत
ये बिल में छिपे चपल मूषक ।।

इस भारत   माँ की   धरती पर 
जन नायक तुम -सा नहीं बचा।
हे महामना     तेरी    कृति   से
इस भारत का    श्रृंगार   रचा।।

श्र्द्धांजलि मेरी  स -अश्रु नयन
स्वीकार करो    हे    महामना ! 
" शुभम" ये भारत माता  है
जो अटल बिहारी    पूत जना।।

💐 शुभमस्तु !
✍🏼© रचयिता 
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...