जितने मुँह उतनी बातें।
कहीं कोमल मृदुल कहीं घातें।
कहीं धर्म की सुगंध कहीं साहित्य का संसार।
कहीं राजनीति की आँधी कहीं सामाजिकता -प्रसार।
कहीं हंसी के फूल कहीं शासन का रूल।
माफ़ी माँग लीजिए गर हो जाए कोई भूल ।
किसी को 'सुप्रभात'बुरा लगता किसी को फोटो वर्जित हैं।
किसी को कट पेस्ट ही करना उन्हें बस वही शोभित है।
चाशनी धर्म की केवल उनको सुहाती है।
किसी को राजनीती की रबड़ी महकाती है।
कोई अनोखे वीडियो सबको दिखाता है।
कोई निज ऑडियो को भेज कर हमको सुनाता है।
कोई तो सौगंध दे दे कर अन्ध विश्वास फैलाता है।
शर्तों में अपनी बाँधकर 'धार्मिक' बनाता है।
बड़े रंग हैं इनके व्हाट्सएप्प निराला है।
मर्जी सबकी पूरी हो बड़ा कर्रा कसाला है।
सबको खुश करना बड़ी मुश्किल में होता है।
कोई हँसता गाता है कोई बस रोता होता है।
ये संसार है मित्रो सभी को खुश करना टेढ़ा है।
लकीरों पै वही चलता जो केवल मेष मेढा है।
शुभमस्तु
-डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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