धृतराष्ट्रों की खुल गई पोल
गांधारी अब पट्टी खोल।
जीओ और जीने दो सबको
पीओ और पीने दो सबको।
ना खाओ ना खाने दोगे
बने बिझुका क्या कर दोगे।
राजनीति में त्याग कहाँ है
जो जहाँ बैठा लूट वहाँ है।
नारों से कोई देश न चलता
कर-कर वादे सबको छलता।
आश्वासन क्या चाटें खाएं
इधर सुनें और उधर सिधाएँ।
चढ़े हुए थे सीढ़ी साठ
तुमने क्या कर दिया विराट!
मेहनत का सब चला गया है
निम्न मँझोला छला गया है।
'ऊपर वालों' के हित चिंतक,
नहीं सभी के हो शुभचिंतक।
धृत -गान्धारी की औलादें,
अंधी जाई अंधी बातें।
अनुगामी अंधे अविचारी,
असत प्रचारक मिडियाधारी।
असत आँकड़े नित फैलाते,
झूठ- पुलिंदे रंग न लाते।
झूठा श्रेय धरे सिर अपने
पीठ ठोंकते नेता अपने।
अंधी भेड़ कुएँ में जावें
सुनें न समझें अति इतरावें।
"शुभम"वक़्त ही राह दिखावे
पूरी सबकी चाह करावे।
💐शुभमस्तु !
रचयिता ✍🏼©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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