ऐ ! मृत्यु तू भी धन्य है,
जो 15 अगस्त को
नहीं झुकने दिया
मेरे प्यारे देश का राष्ट्र ध्वज,
महाप्रयाण पर चले गए
इस नश्वर देह को तज
भारत माता के रत्न
जननायक अटल जी
मिलाने पंच तत्त्वों में
देह की रज,a
तेरी महासमझ का कद्रदान हूँ,
आने वाले को जाने का विधान है,
परन्तु आने जाने के क्षण का भी
कोई नियम है संविधान है,
मेरे देश का स्वाधीनता दिवस
फहराता तिरंगा राष्ट्र ध्वज
फहराता रहा है,
फहराता रहेगा,
तेरे चाहने से ही हुआ है सब कुछ
वरना वक़्त पर , काल पर
किसका वश है,
आना औऱ जाना तो
परवश है,
इसमें नहीं चलता अपना
कोई वश है,
उस परम पिता की
इच्छा के अधीन,
वृद्ध हो प्रौढ़ हो
युवा या शिशु नवीन,
ऐ मृत्यु सिद्ध कर दिया है तूने
की अटलजी मानव नहीं थे,
महामानव थे ,
वे देश के नहीं
भूमंडल के पुरोधा थे,
दिलों में वास करते थे वे हमारे,
जो 16 अगस्त की संध्या
इस नश्वर जगत से सिधारे,
हे परम् पिता परमेश्वर
उनकी दिवंगत महान आत्मा को
परम शांति देना,
उनकी सचाई , कविताई,
सच्ची सियासत ,
उनकी ओजस्वी वाणी ,
उनकी उत्कृष्ट करनी
जनहित और देश सेवा हित मरनी,
को अमर रखना,
हम भारतवासियों के दिलों में
युग-युग तक यों ही
बनाये रखना,
उनके महा कृतित्व को
अटल बनाये रहना ,
वे अटल थे,
अटल हैं,
औऱ अटल ही रहेंगे।
उनकी दिव्य आत्मा
को श्रद्धांजलि अर्पित
करता है "शुभम"...
आप सदा अमर रहें
सदा सदा अटल रहें।
शुभमस्तु !
✍🏼© रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
शुभमस्तु !
✍🏼© रचयिता
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"
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