मंगलवार, 14 अगस्त 2018

सब जानते हैं

क्या कहाँ कब हो रहा सब जानते हैं,
तू आज भी क्यों सो रहा सब जानते हैं।

बंट गए  चूल्हे खिंची दीवार आँगन,
मर रहा है प्रेम ये सब जानते हैं।

भाई भाई का नहीं किसे अपना कहें अब,
औलाद से दुःख पा रहे सब जानते हैं।

ख़ुदपरस्ती बढ़ गई इतनी भयानक,
बाप भी पछता रहे हैं सब जानते हैं।

ब्याह होते ही अलग चूल्हा सुलगता,
मुँह फुलाए जा रहे हैं सब जानते हैं।

ऐश -ओ -आराम में कोई खलल ना हो,
अलग बसते जा रहे हैं सब जानते हैं।

नारियाँ दुश्मन बनी घर सासू ससुर की,
थाने भेजे जा रहे हैं सब जानते हैं।

आरोप झूठे ही लगाए जाते ससुर पर,
दहेज मांगे जा रहे हैं सब जानते हैं।

देवियाँ माता बहन कह पूजते हैं,
उनसे सताए जा रहे हैं सब जानते हैं।

दुर्गा सरस्वति लक्ष्मी  माना जिन्हें हम,
भरम टूटे जा रहे हैं सब जानते हैं।


आरी नारी की बनी हैं नारियाँ ही,
नरक बनते जा रहे हैं सब जानते हैं।

एक आँसू जो गिरा स्त्री-नयन से,
पुरुष नित भरमा रहे हैं सब जानते हैं।

अश्रु - सा कोई अस्त्र कोई भी नहीं हैं,
बाढ़ बहते जा रहे हैं सब जानते हैं।

आदमी की बुद्धि  सम्मोहन में बांधे,
कारनामे नित छा रहे हैं सब जानते हैं।

जो खा रहा लड्डू वही पछता रहा है,
ना भी खाए तो भी क्या? सब जानते हैं।

कैसे पहिए गाड़ियों में लग रहे हैं,
"शुभम" पंचर हो रहे सब जानते हैं।।

💐 शुभमस्तु !

✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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