शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

अस्थि शेष पर राजनीति

अस्थि शेष पर राजनीति क्यों करते हो,
ऊपर वाले से नहिं थोड़ा डरते हो।

नौ वर्षों तक भूल रहे थे तुम उनको,
उन्हीं अटल का नाम भुनाए फिरते हो।

उनके काम न देखे पूर्ण उपेक्षा की,
उन्हीं अटल की राख उठाए फिरते हो।

बैनर होर्डिंग में न दिखाए अटल कभी,
अब अस्थि कलश ले वोट माँगते फिरते हो।

ताबड़तोड़ घोषणाएँ तुम करके नित,
अब अटल -स्मृतियों का नाटक करते हो।

जीते जी तुमने मार दिया था पहले ही,
अब उन्हीं अटल से वोट-याचना करते हो।

अब चुनाव की वैतरणी आसान नहीं ,
अपनी पीठ आप ही थप -थप करते हो।

वे जीवन -वैतरणी करके पार गए,
तुम स्मृति-स्थल तक प्रोटोकॉल कुतरते हो।

जिस दिन तुमने भुला अटल को दिया यहाँ,
अब अर्थी संग पैदल चलके दिखावा करते हो।

सौदेबाजी तुमसे सीखे कोई "शुभम",
अब अटल-अस्थि से सौदेबाजी करते हो।

💐शुभमस्तु !

✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...