मंगलवार, 7 अगस्त 2018

शब्दों के सागर से

मैं खोज रहा मोती शब्दों के सागर से,
मैं सँजो रहा मोती शब्दों के सागर से।

कभी तल तक जाता हूँ ऊपर उतराता हूँ,
कभी घोंघे सीप मिले शब्दों के सागर से।

कभी कंकड़ पत्थर ही कभी रत्न जवाहर भी,
ना श्रम से घबराता शब्दों के सागर से।

जनहितकारी मोती मुझे तुम्हें लुटाने हैं,
एक याचक बनकर ही शब्दों के सागर से।

नहिं ऊंच नीच रखना मेरे शब्दों का परचम,
बस सच ही रहता है  शब्दों के सागर से।

नहिं कोई सियासत है किसी कमल न हाथी की,
बस सच के मोती ही शब्दों के सागर से।

नहिं सवर्ण दलित - कीचड़ मेरे सागर में है,
बहुरंग की होली है शब्दों के सागर से।

थोथे झूठे नारे मिलते नहीं सागर में,
उठती नहीं चिंगारी शब्दों के सागर से।

सत बात "शुभम" कहना  अपना उसूल प्यारा,
चाहे मिर्च लगें उनको शब्दों के सागर से।

💐शुभमस्तु !

✍🏼रचयिता©
डॉ.भगवत स्वरूप "शुभम"

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