गुरुवार, 9 अगस्त 2018

एक लीक काजर की

   बहुत ही प्रसिद्ध लोकोक्ति है : "काजर की कोठरी में कैसौ हू सयानो जाय एक लीक काजर की लागि है पै लागि है। " आज हम सभी उसी काजल की कोठरी में आ जा भी रहे हैं औऱ उसी में रह भी रहे हैं। भला सोचिए क्या काजल की एक लीक  कालॉंच से बच सकते हैं,? कदापि नहीं। ये काजल की कोठरी आख़िर है क्या ? ये काजल की कोठरी है इस देश की सियासत, राजनीति। सियासत में 'सत' के लिए और राजनीति  में 'नीति' के लिए कोई स्थान शेष नहीं है। सियासत, सत अर्थात सत्य से परे है, वहाँ सच्चे औऱ सचाई के लिए कहीं कोई भी स्थान नहीं है। राजनीति में यदि नीति का पालन किया जाता तो अनपढ़ आई ए एस, आई पी एस पर शासन नहीं करते। सारे देश के लिए नीति निर्माताओं की अपने लिए कोई नीति ही नहीं है ।मनचाहे वेतन बढ़ाने के लिए कोई आयोग नहीं, जब कि कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन निर्धारण के लिए हर दस वर्ष बाद वेतन आयोग निर्धारण करता है, वह भी वर्षोँ बीत जाने के बावजूद यथासमय दिया नहीं जाता। यही तो सब काली कोठरियां हैं , जिनमें रहकर उनकी कालोंच हमें काला कर रही है।आम जनता की कोई सुनने वाला नहीं है। उसके शोषण के प्रत्यक्ष और परोक्ष इतने रास्ते हैं , जिनमें उसे चूसा जा रहा है।
   क्या देश और समाज का कोई ऐसा क्षेत्र है, जहाँ सियासत की बदबू न फैली हो। क्या शिक्षा , क्या धर्म , क्या समाज, क्या थाना - पुलिस ,  शासन और प्रशासन :सर्वत्र सियासत विद्यमान है। टी वी वही बोलते दिखाते हैं, जो बुलवाया और दिखवाया जाता है। अखबार वही  छापते हैं जिसके छापने की अनुमति ऊपर से मिलती है।सत्ताधारीयों ने लोकतंत्र के इस स्तम्भ को भी खरीद रखा है। उसकी शाख, पवित्रता और मजबूती को सियासत का घुन निरंतर खोखला कर रहा है। आम का काम ही चुड़वाना है , सो उसे चूसा जा रहा है । इलेक्शन के समय बड़े -बड़े सब्जबाग दिखलाने वाले बगबगे वसन धारी नेता जी पाँच साल बाद ही क्षेत्र में जाते हैं , वह भी वोट माँगने। बड़े बड़े वादे करके जनता को मूर्ख बनाया जाता है, लेकिन सत्ता में आने के बाद सब कुछ भुला दिया
जाता है। तो क्या जनता केवल वोट देने के लिए ही है। न गलियाँ, न सही सड़कें, न समय पर बिजली पानी, ऊपर से करों की मार, न सही उपचार, बनी रहे जनता बीमार । इन्ही सब काली कोठरियों में कोई कब तक प्रभावितब नहीं होगा ! स्कूल कालेज हैं , तो शिक्षा नहीं , योग्य शिक्षक नहीं, 5 साल के नौनिहालों की पीठ पर 7 किलो का भारी बस्ता , टफीन , पानी की बोतल। पानी की बोतल तो इसीलिए है  कि स्कूल में उनके लिए  मोटी मोटी स्कूल फीस और वाहन फीस लेने के बावजूद  पेयजल की भी व्यवस्था नहीं,।इसे कोई शासन औऱ प्रशासन देखने सुनने वाला नहीं। सबकी अपनी अपनी मनमानी चल रही है। बच्चों को पढ़वाना अभिभावक की मजबूरी है। कहीं तो पढवाएँगे ! सब जगह एक हाल है। जैसे सियासत करना देश सेवा के नाम पर एक विराट धंधा है , वैसे ही जनसेवा , स्कूल खोलना , भी सेवा के नाम पर नोट छापने की  टकसालें हैं। इन्ही काली कोठरियों में आमजन काला हो रहा है। सौ रुपये की किताब पर पचास परसेंट कमीशन स्कूल मालिक का । किताबें स्कूल से उठाकर दुकान पर रखवादी गईं, कान को सीधा न पकड़ के घुमाकर पकड़ लिया,  क्या ये शासन -प्रशासन को दिखाई नहीं देता ? देता है, पर थाने की नाक पर डाका और कैसे पड़ता है! रिश्वत लेने वाले रिश्वत देकर दूध के धुले हो जाते हैं। यही तो काली कोठारियां हैं , कोई बचे तो बचे कैसे? शिक्षा और मंदिर जैसे पवित्र स्थल आज सबसे ज्यादा गंदे और कालोंच भरे हुए हैं। मन्दिरों की अकूत कमाई से देश सेवा का कौन सा कार्य किया जा रहा है। धर्म के नाम पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है।इन काली कोठरियों से निजात पाना कोई सहज कार्य नहीं है।
क्योंकि सबके मूल में समाई सियासत ही काली है,अपवित्र है, अस्वच्छ है।

💐शुभमस्तु !

✍🏼लेखक ©
डॉ.भगवत स्वरूप"शुभम"

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