गुरुवार, 9 अगस्त 2018

तुम मिल जाती हो

जहाँ भी जाता हूँ तुम मिल जाती हो,
धतूरे के फूल -सी रोज़ खिल जाती हो।

मंदिर में गया था ईश्वर की तलाश में ,
ईश्वर तो मिला नहीं तुम मिल जाती हो।

बच्चों को भेजा जब स्कूल कालिज में,
शिक्षा की कौन कहे तुम मिल जाती हो।

गली मेरी कच्ची है कोई सुनता नहीं,
नेता ना अधिकारी तुम मिल जाती हो।

थाने जब गया था रपट  जो लिखाने तो,
रपट तो लिखी नहीं तुम मिल जाती हो।

तुम्हारे बिना कहते सब तुम पिछड़े हो,
अगड़ा तो बना नहीं तुम मिल जाती हो।

तुम्हारा साथ चाहिए तो व्यर्थ सब पढ़ाई है,
डीएम की टेबुल पर तुम मिल जाती हो।

जनसेवा केंद्र तो केवल एक बहाने हैं ,
रिश्वत के नाम पर तुम मिल जाती हो।

परिवहन दफ़्तर में भटक रहे  लोग बहुत,
दलालों के नाम पर तुम मिल जाती हो।

ग्रामप्रधान नगर प्रमुख सबकी फूलमाला में,
नालियों की सफाई में तुम मिल जाती हो।

पौधे चार रोपकर मुड़कर भी देखा नहीं,
समाज -सेवा बैनर तले तुम मिल जाती हो।

क्यों नहीं तनख्वाह देते हो इनको तुम,
माँगते हैं रिश्वस्त क्योंकि तुम मिल जाती हो।

सरकारी नोकरशाह मर रहे भूखे सब,
ऊपरी कमाई में तुम मिल जाती हो।

धन्य हो सियासत जी "शुभम," जन जिएं कैसे!
सब जगह लहू चूस तुम मिल जाती हो।

💐शुभमस्तु ! 
 ✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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