कुरसी अर्थात कु + रसी याने कु = बुरी/बुरा , रसी मतलब रस वाली। कुल मिलाकर इसका तात्पर्य हुआ :बुरे रस वाली। जब कुरसी बुरा रस देने वाली है, तब तो आदमी साम, दाम ,दण्ड और भेद चारों हथियारों का प्रयोग करते हुए इसे हथियाने, दूसरे की लतियाने के लिए रात दिन एक किए रहता है। अगर इसका नाम होता सुरसी, फिर तो या तो सुरसा की तरह आदमी को निगल जाती या आदमी ही महावीर हनुमान की तरह उसके मुँह में
प्रवेश करके अंदर बाहर होता रहता। या सुरसी कितना सुंदर रस देने वाली सिद्ध हो जाती। क्योंकि सु का अर्थ सुंदर औऱ रसी तो रस वाली है ही।
आज जबकि यह कुरसी है तब ये हाल है कि क्या आदमी क्या औरत :सभी इसके दीवाने हैं। क्या नेता क्या अधिकारी , क्या राजा क्या रानी, सबको ये कु रस वाली कुरसी इतनी प्यारी कि यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ, देश विदेश , स्वदेश परदेश, सब जगह कुरसी का ही धमाल है। कुरसी के वास्ते नित्य निरंतर बढ़ता जा रहा बवाल है। लेकिन
यह तो कुरसी का ही चमत्कार है, कि इसके लिए न पाप पुण्य की चिंता, न नैतिकता का खयाल, न कहीं न्याय अन्याय की फ़िक्र, बस जैसे भी हो, कुरसी मुझे ही मिल जाए। चाहे मिथ्याचार कर के, लोगों को किडनैपिंग में धरके, पिकनिक में घुमाके, या पैसे का प्रलोभन दिलाके, लोगों को खरीदकर भी कुरसी छीनी जाने का कुकाल चल रहा है। कुरसी के लिए पैसे और जाति के आधार पर अविश्वास करके कुरसी ही तो छीनी जाती है। पहले भी छीनी गई और बाद में भी कुरसी अपहरण का नाटक लंबे समय तक चला। इसीलिए यदि ये कहा जाय कुरसी महा ठगिनी हम जानी :तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
जिसने एक बार कुरसी के कुरस का पान कर लिया, वह आजीवन उसका दीवाना हो जाता है। वह उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहता। वह तो सरकार ने एक उम्र विशेष का पाला पार करने से ठीक पहले ही उसकी सेवा निवृत्ति की व्यवस्था कर दी है, अन्यथा वह आमरण कुरसी छोड़ता ही नहीं। नेता ज्यों ज्यों बुड्ढा होता, त्यों त्यों यौवन पाता। कभी रिटायर होने की न सोचता, न रिटायर होता है। आमरण कुरसी से चिपके रहना उसकी नियति है। कुरस का ऐसा आनंद जैसे कड़वा होने के बावजूद सुरानंद। कुरसी का नशा, आदमी के जहन में कुछ ऐसा बसा, पर आखिर होना ही पड़ता है बेवशा। या तो सेवा निवृत्ति या जीवन-निवृत्ति उसे कुरसी के कुरस से वंचित कर ही देती है। अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, नेताजी, सभी कुरसी - च्युत हो जाते हैं।
यह कुरसी का अजब ,गज़ब मायाजाल है। जिसके लिए कब्र के इंतज़ार में बैठा नेता भी जवान है। क्योंकि कुरसी के कुरस में कमाल है। शासन, सियासत, समाज, जन सेवा, धन सेवा : सर्वत्र इसी का धमाल है।
💐शुभमस्तु !
✍🏼लेखक ©
डॉ.भगवत स्वरूप " शुभम"
प्रवेश करके अंदर बाहर होता रहता। या सुरसी कितना सुंदर रस देने वाली सिद्ध हो जाती। क्योंकि सु का अर्थ सुंदर औऱ रसी तो रस वाली है ही।
आज जबकि यह कुरसी है तब ये हाल है कि क्या आदमी क्या औरत :सभी इसके दीवाने हैं। क्या नेता क्या अधिकारी , क्या राजा क्या रानी, सबको ये कु रस वाली कुरसी इतनी प्यारी कि यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ, देश विदेश , स्वदेश परदेश, सब जगह कुरसी का ही धमाल है। कुरसी के वास्ते नित्य निरंतर बढ़ता जा रहा बवाल है। लेकिन
यह तो कुरसी का ही चमत्कार है, कि इसके लिए न पाप पुण्य की चिंता, न नैतिकता का खयाल, न कहीं न्याय अन्याय की फ़िक्र, बस जैसे भी हो, कुरसी मुझे ही मिल जाए। चाहे मिथ्याचार कर के, लोगों को किडनैपिंग में धरके, पिकनिक में घुमाके, या पैसे का प्रलोभन दिलाके, लोगों को खरीदकर भी कुरसी छीनी जाने का कुकाल चल रहा है। कुरसी के लिए पैसे और जाति के आधार पर अविश्वास करके कुरसी ही तो छीनी जाती है। पहले भी छीनी गई और बाद में भी कुरसी अपहरण का नाटक लंबे समय तक चला। इसीलिए यदि ये कहा जाय कुरसी महा ठगिनी हम जानी :तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
जिसने एक बार कुरसी के कुरस का पान कर लिया, वह आजीवन उसका दीवाना हो जाता है। वह उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहता। वह तो सरकार ने एक उम्र विशेष का पाला पार करने से ठीक पहले ही उसकी सेवा निवृत्ति की व्यवस्था कर दी है, अन्यथा वह आमरण कुरसी छोड़ता ही नहीं। नेता ज्यों ज्यों बुड्ढा होता, त्यों त्यों यौवन पाता। कभी रिटायर होने की न सोचता, न रिटायर होता है। आमरण कुरसी से चिपके रहना उसकी नियति है। कुरस का ऐसा आनंद जैसे कड़वा होने के बावजूद सुरानंद। कुरसी का नशा, आदमी के जहन में कुछ ऐसा बसा, पर आखिर होना ही पड़ता है बेवशा। या तो सेवा निवृत्ति या जीवन-निवृत्ति उसे कुरसी के कुरस से वंचित कर ही देती है। अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी, नेताजी, सभी कुरसी - च्युत हो जाते हैं।
यह कुरसी का अजब ,गज़ब मायाजाल है। जिसके लिए कब्र के इंतज़ार में बैठा नेता भी जवान है। क्योंकि कुरसी के कुरस में कमाल है। शासन, सियासत, समाज, जन सेवा, धन सेवा : सर्वत्र इसी का धमाल है।
💐शुभमस्तु !
✍🏼लेखक ©
डॉ.भगवत स्वरूप " शुभम"
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