रविवार, 5 अगस्त 2018

नकली खुशी!

जब हमारे पास असली खुशी नहीं होती तो नकली खुशी से ही खुश हो लेने की रस्म पूरी कर लेते  हैं।असली खुशी हासिल करने के लिए हमारे संसाधन भी असली ही होने चाहिए। जैसे असली सोना न होने की पूर्ति करने के लिए नकली सुनहरी धातुओं  से देह को सजाना इंसानों, विशेषकर नारियों की मजबूरी हो जाती है। कहीं सुरक्षा कारणों से स्वर्ण -चोरों को धोखा देने के लिए या विवाह, शादियों या समारोहों में मिलने वालों की नज़रों को धोखा देने के लिए नकली  स्वर्णाभूषणों से काम चलाना पड़ता है। वास्तविकता तो ये है कि जब हमारी असली चमक फीकी पड़ जाती है , या हमारे अंदर कोई चमकदार तत्व कम हो जाता है तब नकली साधनों से लीपना -पोतना करके असली की कमी को नकली से पूरा करने का असफ़ल प्रयास करते हैं। नकली खुशी अर्जित करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार की नकली खुशी के हजारों साधन क्रय करने के लिए बाज़ार पटे पड़े हैं। आज का युग नकली खुशी से ही आत्मसंतुष्ट है।  वे युग बीत गए जब आत्मसंयम, तप, त्याग, सदाचार, सुसभ्यता, संसकृति,
सुचरित्र का बल, ओज, कांति और शील हमारे अंदर विद्यमान था। तब हमें ऊपरी ढोंग और आडम्बर करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। ज्यों  - ज्यों हम अशक्त, अबल और तेज हींन होते जा रहे हैं , त्यों - त्यों नकली खुशी संसाधन बढ़ते जा रहे हैं।
   इसी प्रकार जब हमारे देश की प्रतिभाएँ कम खुशी देती हैं, उनके सम्मान, स्वागत और अभिनंदन में हमें कोच होता है या उससे बचते हैं या उनकी उपेक्षा करके उनका अपमान करने से भी नहीं चूकते ।हमें उस नकली खुशी में अधिक् आनंद की अनुभूति होती है, जब इस देश से एक, दो, तीन या चार पीढ़ी पूर्व अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों में पलायन कर चुके लोगों की संतान वहां शिक्षा, राजनीति, अंतरिक्ष, विज्ञान, साहित्य, कला आदि विविध क्षेत्रों  प्रतिभा के रूप में नाम कमाती है, तो हमारी नकली खुशी कई गुना विशाल हो जाती है औऱ हम यह कहते हुए खुशी से फूले नहीं समाते कि वह भारतीय मूल की/के हैं, जबकि वास्तविकता ये है कि उस तथाकथित को तुम्हारे भारत देश की संस्कृति या से सभ्यता से कुछ भी लेना-देना नहीं है। उसने विदेश में जन्म लिया है, जीना, पलना, पढ़ना, बढ़ना, मरना भी वहीं है, परंतु हम भारतीय भारतीय मूल !भारतीय मूल!!अखबारों की सुर्खियों में छापकर, टी वी पर प्रसार कर ऐसे नकली खुशी में मस्त हो जाते हैं , जैसे इंडिया ने कोई वर्ल्ड मैच ही जीत लिया हो।
   नकली सोना असली सोने से ज्यादा असली दिखता है ,इसी उत्साह के बल बूते  पर वह भारतीय सुंदरियों,  दुल्हिनों और अमीर -गरीब सबको खुशी प्रदान करता है, नकली ही सही। धोखे की टट्टी का जब तक भेद न खुले, तब तक तो असली ही है। औऱ कोई अपना भेद खुद ही क्यों खोलने चला ? वैसे असली नकली सब जानते ही हैं, लेकिन जब तक और जितनों तक ऐसा हो सके, उतना ही अच्छा।
   हम भारतवासी असली खुशी हासिल करने के लिये ही प्रयत्नशील रहें, तभी  सच्चे , अच्छे और सुनहरे भारत का निर्माण होगा। ये भारतीय मूल के निवासी होना, आखिर क्या बला है! ये नक़ली खुशी की ही नकली खुशबू है।औऱ
"सचाई छुप नहीं सकती
बनावट   के    उसूलों से,
खुशबू  आ   नहीं सकती
कभी  कागज़ के फूलों से"

💐शुभमस्तु !

✍🏼लेखक ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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