शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

मोहि कुरसी अति भावे

-१-
मेरौ मन और कहाँ सुख पावे!  
जैसे कोई तलाब कौ दादुर
पुनि   तलाब    कूं   धावे।
एक बेर पाय ऊँची कुरसी
पुनि  कुरसी  कूं     धावै।
दरी बिछौना आसन में क्यों,
वो   अपनों     चित    लावै।
सुरा   सुंदरी   मेवा   मिसरी
पाईवे       को       तरसावै।
लगी बटेर  हाथ   अंधेनु  के
पुनि       बटेर     खुजवावै।
नैतिकता की श्वेत चदरिया
कौने         में       लटकावै।
जबहीं चढ़े    मंच  ऊँचे पर
पहन      चदरिया     जावे।
दे - दे भाषन    लंबे - चौड़े
चमचनु     तारी    बजवावै।
भाड़े की  करी भीड़ इकट्ठी
रैली         हू         करवावै।
रोटी     और    पराँठे   पूरी
घर -  घर      ते    मगवावै।
थैली  बाँधि   तुले चाँदी सूं
माथे       मुकुट      बंधावै।
"शुभम" देश भगवान भरोसे
भले     भाड़     में    जावै।।

-२-
मैया मोरी मोहि कुरसीअति भावे।
नियमाचार   टंगे खूंटी पर
कैसे       हू        दिलवावै।
तोरई   लौकी   मुर्गा अंडा
कोई     भेद    न      पावै।
बाँभन ठाकुर बनियां बीसी
एस सी    के    घर   जावै।
घड़ियाली   आँसू की धारा
शोक    में     जाय   बहावे ।
सब मेरे भैया   चाचा दादा
मोहि     अपनपौ       पावै।
भाभी चाची   दादी   माता 
सबके      पायनु       लागे।
चाहे हाथी साइकल चढ़ जाऊं 
चाहे      कमल          सुहावै।
मेरौ लक्ष्य आँख चिड़िया की
कैसेहूँ                  बिठवावै।
मैं   तेरौ    सुत     तू मैया मेरी
भारत        मात        कहावै।
"शुभम"भलें कोउ करम करूँ मैं
परि कुरसी    मिलि    जावै।।

💐शुभमस्तु !

✍🏼रचयिता "©
डॉ .भगवत स्वरूप " शुभम"

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