बुधवार, 29 अगस्त 2018

अपनी गलती स्वीकार नहीं

   जगत के अनेक प्राणियों में मनुष्य भी एक प्राणी है, लेकिन सबसे भिन्न और सबसे विशेष । सभी प्राणी अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं। मनुष्य भी करता है। क्योंकि संघर्ष ही जीवन है और जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। जो संघर्ष नहीं करता , उसका अस्तित्व उतनी ही जल्दी समाप्त भी हो जाता है।
   सभी प्राणियों में प्रकृति ने ऐसी कुछ विशेषताएँ प्रदान की हैं , जिनसे वह अपने अस्तित्व को बनाए रखने में जूझता रहता है। जैसे सर्प और बिच्छू को विष और दंशन दिया तो पखेरूओं को उड़ने की शक्ति प्रदान की है। शेर चीते को शक्ति औऱ खूंख्वार स्वभाव दिया है। कुछ प्राणी ऐसे भी हैं जो पकड़े जाने से बचने के लिए अपने शरीर से कुछ जहरीले पदार्थ फेंकते हैं या मूत्र विसर्जन करके अपने शत्रु को भयभीत कर देते हैं।जैसे विष खोपरा, टोड आदि। अस्तित्व की रक्षा औऱ संघर्ष के अनेक साधन सभी प्रकृति प्रदत्त ही हैं।
   इसके विपरीत मानव के पास सबसे बड़ा अस्त्र उसकी बुद्धि है।इसीलिए उसे बुद्धिमान प्राणी कहा जाता है , जिसके बलबूते पर वह  सारी प्रकृति और जड़ चेतन से अपना लोहा मनवाता है। संसार में निरन्तर होती हुई प्रगति और विकास के लिए उत्तरदायी मनुष्य ही है। उसका एक ओर रचनात्मक रूप इतना व्यापक और  विशेष है कि उसने विज्ञान, कला , अध्यात्म , धर्म , संस्कृति, साहित्य, दर्शन आदि विविध क्षेत्रों में विकास के झंडे गाड़ दिए हैं। दूसरी ओर उसने मानसिक , स्थलीय , जलीय , आकाशीय और वायवीय प्रदूषण फैलाकर अपने साथ साथ सारी प्रकृति के लिए भयानक समस्या पैदा कर दी है।
   मनुष्य जब कोई गलत काम या अपराध करता है तो सहज ही उसे स्वीकार नहीं करता। काश यदि ऐसा होता तो देशभर में इतनी अदालतें ,हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी नहीं होते। इतनी मारकाट नहीं होती। आदमी आदमी के खून का प्यासा नहीं होता। और सबसे बड़ी बात कि अपने असत्य , झूठ , चोरी और अपराधों पर्दा डालने या सफाई देने की कला में माहिर नहीं होता। पढ़ लिखकर आदमी बुद्धिमान नहीं हुआ , बल्कि अपने गुनाहों पर पर्दा डालने या सफाई देने की कला में कुशल हो गया। इसीलिए पढ़ा-लिखा आदमी अपने बुद्धि कौशल को धनात्मक न  बनाकर उसका ध्वंशात्मक प्रयोग करने का विशेषज्ञ हो गया। जितना ज्यादा पढ़ा, उतना ही सफाई देने में आगे बढ़ा। वह आजीवन मुकदमा लड़ लेगा , पर ये एक बार भी नहीं कहेगा कि गुनाह मेरा ही है। जब कानूनी शिकंजे में फंस जाता है  या बड़े भाई  डंडानाथ के नीचे आता है तब स्वीकारना उसकी विवशता हो जाती है। ये दिमाग ही उसकी विशेषता है। सहज रूप में गलती स्वीकारने में उसकी नाक कटती है।मनुष्य का दिमाग ही उसका अस्त्र है , ढाल है और है उसके संघर्ष का औजार। इसी दिमाग से वह मानव से दानव भी बन जाता है,और महामानव भी। इस प्रकार आदमी ही आदमी के लिए देवता है , पिशाच है, रक्षक भी है और भक्षक भी। आदमी को जितना भय आदमी से है उतना  शेर , चीते या अन्य जंगली  जीवों से नहीं है। आज आदमी ही आदमी का आहार है।बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा रही हैं।  मनुष्य मनुष्य का, पड़ौसी  पड़ौसी का शत्रु सिद्ध हो रहा है।घरों के ताले कुत्ते , बिल्ली, बाघ, बगहर्रे, चिड़ियाँ , साँप , बिच्छू नहीं चटकाते , ये काम आदमी करता है।इस प्रकार ये बस्तियाँ , ये कस्बे , ये गांव , ये नगर और महानगर जंगल से भी
अधिक  भयोत्पादक बन चुके हैं। ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे, ताकि हम फिर ये गान गा सकें:
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाक  भवेत।।

💐शुभमस्तु !

✍🏼©लेखक
डॉ. भगवत स्वरूप"शुभम"

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