गुरुवार, 21 नवंबर 2019

आए हम बिना नहाए [ कुण्डलिया ]


♾♾♾♾♾♾♾
झंडा     गाड़ा     शीत    ने ,
थर  -   थर    काँपे     गात।
शब्द  निकलते  तुहिन -  से,
जम      जाती     हर  बात।।
जम      जाती     हर     बात,
कान     तक    कैसे   जाए?
जड़ता            लेती        घेर,
नारि  -     सी  वह   शरमाए।।
कोई         लेता          धूप ,
जलाता       कोई       कंडा।
'शुभम '       फहरता       खूब ,
धरा  पर  शीतल  झंडा।।1।।

गाढ़ा   -    गाढ़ा       कोहरा,
जैसे        उड़े          कपास।
नज़र   न    आए   पास भी ,
सूरज          हुआ      उदास।।
सूरज        हुआ        उदास,
धूप      की      कैसी  आशा !
शीत     -      लहर     उद्दाम ,
फेंकती   अपना       पाशा।।
गौरेया         निज        नीड़,
न     छोड़े    बकरी    बाड़ा।
श्वेत     कुहर      की     धूम ,
उड़  र हा  गाढ़ा - गाढ़ा।।2।।

गेंदा       महका      बाग   में,
क्यारी      खिला     गुलाब।
चमके    मोती     पात     पर,
जो   है     निर्मल      आब।।
जो      है      निर्मल      आब,
शरद    में  डाल  -  डाल पर।
कलरव          करते      कीर,
नाचते  पग   उछाल   कर।।
गुनगुन        करती     धार,
पात्र   का     शीतल    पेंदा।
'शुभम '       झूमता     माल,
महकता   महमह  गेंदा।।3।।

साग    चने    का    शीत  में,
सौंधा           सरसों -   साग।
खा    पाता   है    नर    वही ,
जिसका है   शुभ    भाग।।
जिसका  है    शुभ    भाग ,
बाजरे    की      सद  रोटी।
गरम  -   गरम    भा  जाय,
भले     छोटी   या  मोटी।।
बथुआ      के      बड़  ठाठ ,
भाग   है  'शुभम'  बने  का।
होता         सुधा       समान ,
शीत   में साग  चने का।।4।।

कौन       नहाए    शीत   में ,
साहस    की      है     बात।
कम्बल  शॉल  लिहाफ़ तज,
शीतल जल    न    सुहात।।
शीतल    जल   न   सुहात,
सेज   पर  गरम     परांठा।
गर्म      पेय     के      साथ ,
दूर     जाड़े      का  काँटा।।
कोई      जान     न     पाय,
किसी को  क्यों   बतलाए?
'शुभम '  आ    गए    आज,
मित्र  हम  बिना नहाए।।5।।

💐शुभमस्तु  !
✍ रचयिता ©
🦚 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम '

20नव.2019◆4.00पूर्वाह्न।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...