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झंडा गाड़ा शीत ने ,
थर - थर काँपे गात।
शब्द निकलते तुहिन - से,
जम जाती हर बात।।
जम जाती हर बात,
कान तक कैसे जाए?
जड़ता लेती घेर,
नारि - सी वह शरमाए।।
कोई लेता धूप ,
जलाता कोई कंडा।
'शुभम ' फहरता खूब ,
धरा पर शीतल झंडा।।1।।
गाढ़ा - गाढ़ा कोहरा,
जैसे उड़े कपास।
नज़र न आए पास भी ,
सूरज हुआ उदास।।
सूरज हुआ उदास,
धूप की कैसी आशा !
शीत - लहर उद्दाम ,
फेंकती अपना पाशा।।
गौरेया निज नीड़,
न छोड़े बकरी बाड़ा।
श्वेत कुहर की धूम ,
उड़ र हा गाढ़ा - गाढ़ा।।2।।
गेंदा महका बाग में,
क्यारी खिला गुलाब।
चमके मोती पात पर,
जो है निर्मल आब।।
जो है निर्मल आब,
शरद में डाल - डाल पर।
कलरव करते कीर,
नाचते पग उछाल कर।।
गुनगुन करती धार,
पात्र का शीतल पेंदा।
'शुभम ' झूमता माल,
महकता महमह गेंदा।।3।।
साग चने का शीत में,
सौंधा सरसों - साग।
खा पाता है नर वही ,
जिसका है शुभ भाग।।
जिसका है शुभ भाग ,
बाजरे की सद रोटी।
गरम - गरम भा जाय,
भले छोटी या मोटी।।
बथुआ के बड़ ठाठ ,
भाग है 'शुभम' बने का।
होता सुधा समान ,
शीत में साग चने का।।4।।
कौन नहाए शीत में ,
साहस की है बात।
कम्बल शॉल लिहाफ़ तज,
शीतल जल न सुहात।।
शीतल जल न सुहात,
सेज पर गरम परांठा।
गर्म पेय के साथ ,
दूर जाड़े का काँटा।।
कोई जान न पाय,
किसी को क्यों बतलाए?
'शुभम ' आ गए आज,
मित्र हम बिना नहाए।।5।।
💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🦚 डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम '
20नव.2019◆4.00पूर्वाह्न।
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