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आओ भारतभूमि के नवगीत गाएँ।
प्रीत पाएँ प्रीत की शुभ रीत लाएँ।।
देह मानव की मिली हित कर्म कर लें।
देह के अनुरूप जीवें धर्म धर लें।।
स्वार्थ की पगडंडियों से दूर जाएँ।
आओ भारतभूमि के नवगीत गाएँ।।
सिंह है वनराज पर हिंसक बना है।
तू मनुज होकर मृतक सा क्यों तना है??
वृक्ष पर जब फल लगें वे सिर झुकाएँ।
आओ भारतभूमि के नवगीत गाएँ।।
प्रकृति की हर मूकता नवज्ञान देती।
मनुज की वाचालता अभिमान सेती।।
निर्बलों की मदद में हम पग बढ़ाएं।
आओ भारतभूमि के नवगीत गाएँ।।
अपना पड़ौसी देखकर क्यों जल रहे हो?
आँच उपले की सदृश जल बल रहे हो ।।
उसके सदृश आगे बढ़ें फिर मुस्कराएं।
आओ भारतभूमि के नवगीत गाएँ।।
देश की थाती संभालें है तुम्हारी।
बह रही है गंगजल की अमृत धारी। ।
स्नात कर तन मन सकल निर्मल बनाएं।
आओ भारतभूमि के नवगीत गाएँ।।
यौनि भोगों की नहीं नर कर्म कर ले।
पुण्य कर्मों से घड़ा आकंठ भर ले।।
चर्म का ये आवरण पावन बनाएं।
आओ भारतभूमि के नवगीत गाएँ।।
प्यार, ममता, दया, करुणा को बढ़ाकर।
बंधुता का शीश वंदन में चढ़ा कर।।
'शुभम ' सत निज वचन से अपना बनाएं।
आओ भारतभूमि के नवगीतगाएँ।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
20.11.2019★8.45 अप.
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