शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

ग़ज़ल



आश्वासनों   से ये देश नहीं चलता।
भाषणों    से  संन्देश नहीं फलता।।

कितने     कौवे   ये   मरालवेशी  हैं,
ये   वेश     ही तो  हर  कहीं छलता।

आँधियों     में   भी शमा नहीं हिलती,
डटा    सरहद   पे   जवां नहीं टलता।

देश   के  भक्त हैं कृषक जवान सभी,
जिन्हें  करनी का सुफल नहीं मिलता।

गदहों  को पंजीरी बंट  रही है 'शुभम',
कामगारों  का कोई वश नहीं चलता।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

22.11.2019 ★1.50अप.

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