वायदों से वतन नहीं चलता।
भाषणों से सुमन नहीं खिलता।।
कितने कौवे बने यहाँ कोयल,
वेश ही तो सब कहीं छलता।
आँधियाँ ग़म की हों या तूफान हों,
सरहदों से जवां नहीं टलता।
देश के भक्त हैं किसान सभी,
जिन्हें सेवा का फल नहीं मिलता।
गदहों को बंट रही पंजीरी 'शुभम',
कामगारों का वश नहीं चलता।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍎 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
22.11.2019 ★1.50अप.
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