बुधवार, 27 नवंबर 2019

ग़ज़ल


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  काफ़िया - आ
  रदीफ़ - गया।
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मैं   कहाँ    से   था चला कहाँ आ गया।
तूफ़ान  से   रास्ता  मेरा   टकरा  गया।

टुकड़े  -  टुकड़े  जी   रहा  था  ज़िन्दगी
वक़्ते -  आख़िर   ही   ज़माना  भा गया।

रोज      सूरज      कर    रहा   है रौशनी,
ज़िंदगी       में    क्यों   अँधेरा  छा गया।

बेमुरब्बत      है       फ़रिश्ता   मौत का,
जाने   कितने   आसमां   वो  खा गया।

मैंने    समझा   था     जिसे   अपना यहाँ,
वक्त       पड़ने     पे    मुझे   तड़पा गया।

देख दुनियाँ का  चालो- चलन ऐ  'शुभम',
सोचता    हूँ     समय     कैसा आ   गया!

💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🔆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

26.11.2019●5.15अपराह्न।

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