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जली पराली खेत में,
धुआँ उठा सब देश।
सुनो सजन धारण करो,
नेताजी का वेश।।1।।
जनता की गाली सुनो ,
या कर उचित उपाय।
बीमारी तुम बो रहे,
मची हाय ही हाय।।2।।
मत की ख़ातिर मंद हैं,
नेताजी के बोल।
अन्य दलों पर लीपते,
जहर मिला रस घोल।।3।।
आरोपों की रेवड़ी ,
बंटती चारों ओर।
ख़ुद को दूध धुला कहें,
चोर मचाए शोर।।4।।
हर मुद्दे पर कीचड़ें ,
बिखराते हैं लोग।
रोग - शमन करते नहीं,
बढ़ा रहे नित रोग।।5।।
राजनीति के रंग से,
धुआँ हो रहा काक।
दूर जमालो जा खड़ी,
जली पराली खाक।।6।।
यहाँ आग लपटें वहाँ,
घुसी नाक मूँ खाक।
टी वी पर बहसें छिड़ीं,
रहे ढाक के ढाक।।7।।
सत्ता को मत दोष दें,
दोषी मात्र किसान।
ना मानो तो देख लो,
काले राख - निशान।।8।।
खिसियानी बिल्ली कहे,
चल कुत्ते हट दूर।
दाग लगा मत वेश में,
हम शासन के शूर।।9।।
जनता झेले रात दिन,
उसकी नहीं बिसात।
कीचड़ वही उछालते,
दस सिर कर भी सात।।10।।
ले - ले अपनी ढपलियाँ,
बजा रहे हैं लोग।
'शुभम ' लेखनी घिस रहा,
काव्य - साधना - योग।।11।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
22.11.2019◆9.45अप.
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