गुरुवार, 14 नवंबर 2019

राम -गंगा में सुधा का सार है [ गीत ]



राम   - गंगा  में सुधा  का सार है।
स्नान   करना  पावनी उपहार है।।

सब    जगह    रमता वही तो राम है।
बुद्ध,शिव, शंकर  वही   घन श्याम है।।
भक्तजन    के   हर   गले का हार है।
राम   -   गंगा    में  सुधा का सार है।।

भेद     में   वैषम्य   में  नहिं राम है।
जाति   से भी राम का क्या काम है??
कपट    से   भारी   धरा का भार है।
राम  - गंगा     में  सुधा   का सार है।।

तिलक , माला,  छाप तो सब ढोंग हैं।
सीख     देते     औऱ  को सब पोंग हैं।।
कथन   करनी    के  नहीं अनुसार है।
राम -  गंगा    में     सुधा का सार है।।

आप    को धोखा  दिए नर जा रहा।
आदमी    ही    आदमी  को खा रहा।।
नफ़रतों   का   ही    खुला  भांडार है।
राम  -  गंगा   में  सुधा  का सार है।।

आदमी    की     देह में   खर श्वान  हैं।
काम, भोगों   में  निरत नित जान हैं।।
'शुभम'    मानव -  देह  इक उपहार है।
राम -   गंगा    में   सुधा    का सार है।।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🦚 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'

13.11.2019 ●7.45 अपराह्न।

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