बुधवार, 13 नवंबर 2019

राम सरूप की छाँह [ सवैया ]



राम          कौ      नामु    जपौ जितनों,
उतनी      मन कों सुख शांति मिलैगी।
राम          कों    भूलि    गयौ  मनवा,
आजमाय     लै  रे  दुख भ्रांति मिलैगी।।
राम           ही      राम ही    राम जपौ,
तन    में   मन में नव कांति  मिलैगी।
इतराय         रहौ       धन  के मद में,
   दुख दारिदजन्य कुक्रान्ति मिलैगी।।1।।

राम             बसें        जड़  -  चेतन   में,
तन     में     मन   में   सब राम बसाऔ।
राम           की    आस  - बिसास   करौ,
मन       राम   सरूप    की छाँ हबसाऔ।।
दूरि         जो          राम     सों    जेते रहौ,
जब       कष्ट   मिलें   तब चों तु रिसाऔ।
मन       के     दर   में    जब     राम  बसें,
 तब    कंचन  - देह    कसौटी   कसाऔ।।2।।


जानकी        नाथ     कों  जानि लै जीव,
न        जानौ    तौ घोर बिपत्ति परैगी।
खर      सूकर    श्वान      समान न जी,
भजि राम तौ भीति की भित्ति गिरैगी।।
भटकौ    -   भटकौ       चौरासी     फिरै,
तिसना   जो   तजै शुभ वित्ति मिलैगी।
नर   -   देह     तू   धारि पसू सौ फिरै,
पसु - कर्म  करै पसु जौनि मिलैगी।।3।।

राम      के      नाम   की   भगति करें,
वाहि        राम    हूँ जाप   करें मन ते।
सुधि         लेत     सदा    श्रीराम प्रभू,
भजि    लै    भजि    लै  नर रे मन ते।।
जाके     नाम    सों    तैरि   उठे पथरा,
जिय     बात      खरी    रामायन ते।
तेरौ       भाग   बड़ौ     है जो तू नर है,
तेरी     देह    भली   खर  श्वानन ते।4।।

नर -  कर्म    कौ फूलु खिलौ जब ते,
खुशबू       बदबू     फैलत  जगमाहीँ।
 सब    स्वर्ग    औ   नर्क   यहीं पे बने, 
सब    भोगनौ  होत  है भोग यहाँ ही।।
बचि     कें  कोउ   जाय  सकौ  न कहूँ,
सब       देखते   रामजी  कर्म सदा ही।
मति         धोखे   रहौ  शुभ  कर्म करौ,
सिग   जीव  चहैं  प्रभु राम की छाहीं।।5।

💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

12.11.2019 ◆9.10 अपराह्न।

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