शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

सर्वे भवन्तु सुखिनः [ व्यंग्य ]

                 हम तो चाहते ही यही हैं कि सब सुखी हों, सानन्द ,स्वस्थ और समृद्धिशाली हों। चाहे वे पराली जलाने वाले हों या डॉक्टर हों अथवा जनता - जनार्दन हों। क्योंकि वे सभी अपने ही तो हैं। सबसे हमें काम है। यदि वे नाराज हो गए तो हम कहीं के भी नहीं रहेंगे।

                  हम बहुत ही दूरदर्शी हैं। पारदर्शी हैं। न्यायप्रिय हैं। जनप्रिय हैं। किसी को दुःखी कैसे देख सकते हैं भला। यही तो है हमारी असली कला। यह तो आप अच्छी तरह से जानते ही हैं कि कहीं आँख बचाकर , कहीं कान से बहरा बनकर हमें आगे बढ़ना पड़ता है। पर जानते समझते हम सब हैं। आप हमें इतना बुद्धु भी न समझ लीजिए। इतना तो हमारा यकीन कीजिए कि हम आपके बहुत बड़े शुभचिंतक हैं। क्या करें यही तो हमारा असली फ़र्ज़ है! हम सच्चे देश सेवक हैं। वह भी जनप्रिय देशसेवक!! 

               जब प्यार (पराली) जलता है। तो उसकी तीव्र चिरायंध से हमारा भी कुछ -कुछ जलता है। पर आप तो जानते भी  हैं कि वोटतंत्र में सब चलता है। सब तरह चलता है। भले ही कुछ लोगों को बहुत -बहुत खलता है, पर किया जाए तो क्या ? हमें तो इधर भी देखना है ,उधर भी देखना है। कुछ ऐसे भी हैं ,जिनको हमे देख लेना है। फिर भी हम चाहते हैं कि सब सुखी हों।

                     सुख की चाहना किसको नहीं है। सबको ही है। एक सुअर भी सुख-प्राप्ति की लालसा में कीचड़ में किल्लोल करता है। उस समय वह स्वर्गानन्द का परम् आनन्द का सुखानुभव ही करता है। वह उस वक्त न किसी से डरता है और न ही कोई विघ्न बर्दास्त करता है। इसी प्रकार हर मानव की सुखानुभूति के विविध इन्द्रधनुषी रूप हैं। सब अपने -अपने राग -रंग में अपने साम्रज्य के भूप हैं। दादुर के लिए अखिल ब्रह्मांड पानी भरे गहरे कूप हैं।मच्छरों के वास्ते नालियों के गदले ग़ज़बजाते यूप हैं। अपनी- अपनी सबकी सीमा है। सबके सुख का अलग - अलग बीमा है। कोई तेज है , तो कोई बहुत धीमा है। हम सबको सुख बांटते हैं। यह बात कुछ अलग है कि मलाई भी हमीं चाटते हैं।

             हम अपनी संस्कृति के मूलमंत्र 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' के पावन उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन भी लगाते हैं और बिना ही कोई अवकाश लिए हुए ही झंडे के कफ़न की अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए सुख बांटते रहते हैं। अपने जीवनानुभव का भरपूर उपयोग सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय करते रहते हैं। वास्तव में हम ही तो सच्चे देशभक्त हैं ।स्वघोषित राष्ट्रभक्त हैं। कोई माने या न माने। जो जितना जाने ,उतना माने। जो न जाने , वह भला क्या माने? उसे क्या समझाने? सब अपनी -अपनी खींचे - ताने। पर हम तो समर्पित ही हैं रात-दिन सुख को बंटवाने।हमारा मूलमंत्र है: सर्वे भवन्तु सुखिनः।। 
 💐शुभमस्तु ! 
 ✍लेखक © 🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम' 
 21.11.2019◆8.25 अप.





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