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'खा' 'पी' 'ली' सौगंध हम,
गई उदर की माँद।
गुड़ गुड़ का होता नहीं ,
अब तो कोई नाद।।1।।
सौ गंधों में एक भी ,
गई न अपनी नाक।
कैसे हो निर्वाह फिर,
दी दामोदर ढाँक।।2।।
सात भँवर के बीच में,
फँसी हुई है नाव।
सात वचन की शपथ का,
कहाँ बचेगा चाव।।3।।
खर्च करोड़ों का हुआ ,
एक शपथ के हेत।
तीन मिनट की शपथ का ,
उजड़ रहा नित खेत।।4।।
रस्म अदा से पूर्व तो,
रस था घन - बौछार।
कसम - रस्म जब हो गई ,
वचन हुए सब छार।।5।।
मात्र लकीरें पीटने -
का होता क्या अर्थ !
करना है प्रण पूर्ण निज ,
पूरा मन का स्वार्थ।।6।
शपथ सुनहरी स्वर्ण - सी,
कठिन बहुत निर्वाह।
सस्ती लगती लवण - सी,
वाह ! वाह !! की चाह।।7।।
भँवर भाँवरों के लगे,
उथले पहले सात।
नानी आई याद तब,
चला खेल शह - मात।।8।।
शपथों से जीवन चले ,
नहीं चलेगा देश।
वसन धार लो बगबगे,
बदलो कोई वेश।।9।।
शपथों का फैशन चला ,
यहाँ वहाँ सौगंध।
जली पराली खेत में,
फैल रही दुर्गंध।।10।।
आओ भारतवासियो,
लिए बिना सौगंध।
फैला दें सर्वत्र सद,
'शुभम' विमल सौ गंध।11।।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
☘ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
30.11.2019◆12.30 अपराह्न।
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