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अच्छी लगती बहुत रजाई।
देती है हमको गरमाई।।
शीतकाल की ऋतु जब आती
धूप गुनगुनी हमें सुहाती।।
सब कहते हैं सर्दी आई।
अच्छी लगती बहुत रजाई।।
कोहरा धुआँ -धुआँ सा छाया।
ज्यों तूफान रुई का आया।।
दिखे न गड्ढा गहरी खाई।
अच्छी लगती बहुत रजाई।।
हमने पहने स्वेटर जरसी।
ओस बूँद बन नभ से बरसी।।
घुसीं रजाई दादी ताई।
अच्छी लगती बहुत रजाई।।
विद्यालय में खेलें खेल।
छुकछुक चलती अपनी रेल।।
फिर भी ठंड सताती भाई।
अच्छी लगती बहुत रजाई।।
गज़क सिंघाड़े भी हैं आए।
मूँगफली भी मन ललचाए।।
भाती मन को दूध - मलाई।
अच्छी लगती बहुत रजाई।।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
19.11.2019 ★ 6.30अप.
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