प्यार
जल रहा
नफ़रत धुंधिआती आई
अंधी हुई
दिशाएँ।
अपने
पैरों में
मार कुल्हाड़ी चुप
हैं सभी
सुधारक।
जला
पराली खेत
कृषक खड़ा है
देख लपटें
निश्चिंत।
पूरा
होता स्वार्थ
नहीं कोई परमार्थ
वाह रे !
अन्नदाता।
धुआँ
फैला टी वी
अखबारों में भारी
देते रहो
गाली।
कहें
क्या वे
मतलब मत से
हो कितनी
दुर्गति।
फ़ुहारें
सांत्वना की
देना बहुत ज़रूरी
बनाएं क्यों
दूरी !
आय
डॉक्टरों की
बढ़ाना मजबूरी अपनी
माँग सबकी
पूरी।
रखना
खुश इनको
उनको सबको पूरा
गले भुकता
छुरा।
सियासत
घुस गई
पराली धूम सघन
वे निश्चिंत
प्रमन।
सुबह
सुरमई धुंधली
सुनहरी नहीं ताजी
सब कहीं
धुआँ।
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
22.11.2019★4.00अप.
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