सरिता में जो जल बहता है।
हर कोई निर्मल कहता है।।
मानव करता दूषित गंगा,
फिर भी गंगा जल कहता है।
नित्य बनाता नए बहाने,
जब पूछो तब कल कहता है।
समझाने से नहीं सुधरता,
खल मानव तो खल रहता है।
'शुभम'वही जाता मंज़िल पर,
चलने का मन - बल रहता है।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🍀 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
10.11.2019 ◆12.30 अपराह्न।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें