मंगलवार, 5 नवंबर 2019

न दिया न दिया सब लोग कहें [ सवैया ]



अपने -   अपने  सिग   लोग कहें,
अपनों न दिखौ सिगरे जग माहीं।
 सिग  स्वारथ   लागि  जुहार करें,
बस पेड़  ही  देत हैं शीतल छाँहीं।।
दीनन        कों   न  दया  मिलती,
रीरिआय         रहे  फैलावत बाँहीं।
बहुतेरे    '  शुभम '    टेरे    परखे,
 सिग हाथ  हिलाय रहे करि नाहीं।।1।

सुख  में  सब प्यार  सों  बात करें,
दुख  में  कोऊ आँखिंन हेरत नाहीं।
भूख     में     बूझै    नहीं  भोजन,
भलें  भूखौ  मरै  कोऊ पथ राही।।
पईसा    ही  खिंचि  रह्यौ पईसा,
पईसा  की  ही   है  रही  है वा'वाही।
कैसें        'शुभम'   परतीति   करें,
   मुख देखि के बोलत लोग सदा ही।।2।

सौर     भलें      फटि   जाय   नई, 
परि     पांय      पसारि    रहे  लंबे।
घर   भाँग   हूँ   भूजी    नाहिं हती,
नित    बोल   बखानि    रहे लंबे।।
शान   कौ    मान    घटै   न  कहूँ,
तम्बुआ      बड़े     तानि   रहे लंबे।
देखी    'शुभम'      जगरीति  सदा,
बड़  बोल    बकें    लंबे - लंबे।।3।

चाहत        मान        सबै   अपनों,
परि     देंन   की   सोच नहीं मन में।
जैसें    बोलत    बोल    कुआँ  प खड़े,
तैसी   लौटेगी   बात  जु  कानन में।।
जो     देहुगे      लौटे    वही  छिन में,
यह       राज  छिपौ  जगती कन में।
बात     'शुभम '       सौने-सी   खरी,
चाहें   गाम  रहौ  या रहौ  वन में।।4।

न   दिया  न  दिया  सब लोग कहें
नदिया    देती   दिन  -  रात   हमें।
सोवै   न    कबहुँ  नित  जागत ही,
बोलै    न     कबहुँ   बड़बोल हमें।।
अपने     ढँग    में   अकड़ो  तू  रहै,
तेरी  ऐंठ  -  उमेठ     न  सोहै  हमें।
देखी       'शुभम'     जगरीति  यही,
स्वारथ    प्रीति    न    भावै  हमें।।5।

💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🔆 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '

04.11.2019 ■5.00 अपराह्न।

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