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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
मेरे अस्तित्व का हर कण तुम्हारा है,
तुम्हीं कारण तुम्हीं से तन हमारा है,
मेरे मन में सदा जागृत जीवंत हे माँ!
तुम्हीं ने मेरे संस्कारों को सँवारा है।
-2-
माँ का दूध ही है रक्त मम तन का,
माँ का वजूद सर्वस्व मम मन का,
माँ हो तुम्हीं मम भाव कल्पना वाणी,
माँ हो तुम्हीं सर्वोच्च इस तन कन का।
-3-
जीवंत स्नेह का रूप मेरी जननि माँ है,
सदा ही निवारे कष्ट वही मेरी माँ है,
सोते जागते सदा साक्षात आँखों में,
जीवन का दृढ़ कवच एक वह मेरी माँ है।
-4-
पिता अगर आकाश धरा है मेरी माता,
व्यापक पिता महान धैर्य है जननी माता,
माँ की तुलना नहीं किसी से भी हो पाती,
मैं शिशु हूँ नादान स्नेह- आँचल है माता।
-5-
संस्कार शिक्षा की पहली गुरु माता है,
होती संतति सुखी जननि को जो ध्याता है,
माँ की समता में न टिका है कोई भू पर,
सुत 'शुभम' का अपनी माँ से ये नाता है।
🪴 शुभमस्तु !
१७.०६.२०२१◆१०.३०आरोहणम मार्तण्डस्य।
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