रविवार, 20 जून 2021

एक हिमालय एक तिरंगा🇮🇳 [ गीत ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

तार -  तार   भारत   माता के,

वसन  फटे  हैं  बिखरे   बाल।

आँखों  पर  संतति पट  बाँधे,

देखो  ये   माता    के  लाल।।


एक  हिमालय   एक  तिरंगा,

एक    मात्र    पावन    गंगा।

क्लीव हो गया  मानव  कैसे,

जिसे  देख   लो   है   नंगा।।

ढोंग  दिखाता  केसरिया का,

वृथा ठोंकता  है  नर  ताल।।

तार -  तार  भारत  माता के,

वसन  फ़टे  हैं बिखरे  बाल।।


वीरों का  इतिहास थाम कर,

उसको  शर्म     नहीं   आती।

संभा जी   रणवीर  शिवा जी,

की  करनी  क्या सिखलाती।।

ऋषियों का वंशज कहलाता,

आँसू  रोते भर -  भर गाल।।

तार - तार  भारत    माता के,

वसन  फ़टे हैं  बिखरे  बाल।।


केरल का  क्या  हाल हुआ है,

देख - जान  कुछ   सोचा   है?

टाँगों  में जो   हरा -  हरा   है,

जटिल  बड़ा  ही  लोचा  है।।

नेता   को  बस  वोट  चाहिए,

जड़ें  खोदता    तेरा   काल।

तार - तार   भारत  माता  के,

वसन फ़टे  हैं  बिखरे  बाल।।


आग लगी   बंगाल  धरा  पर,

नयन   बंद   कर   बैठे    हो !

चीत्कार  सुन कर  भी  बहरे,

राजनीति -  गृह   पैठे    हो!!

कहाँ गई   सब   ऐंठ हेकड़ी,

मंद पड़   गई   तेरी    चाल।

तार  -  तार  भारत  माता के,

वसन  फ़टे  हैं  बिखरे  बाल।।


भुना  रहे  अतीत   का  गौरव,

नाम   बेच  कर    खाते    हो !

सत्ता  पद हासिल   करने को,

जनता   को    भरमाते   हो !!

जुबां  काट  लेते  हो  सत की,

दिखलाता  जो सच्चा   हाल।

तार -  तार   भारत   माता के,

वसन  फ़टे हैं   बिखरे  बाल।।


क्रीत  मीडिया   टी.वी. चैनल,

खबरें छाप    रहे    अखबार।

वे तव   इच्छा   के   गुलाम हैं,

रहते   हैं जो   अश्व -  सवार।।

जनता तड़प रही मछली-सी,

छ्द्म  आँकड़ों के सब जाल।।

तार -  तार   भारत माता के,

वसन फ़टे  हैं  बिखरे  बाल।।


शुभ का श्रेय शीश निज बाँधा

कुत्सित   कर्म    पराए  नाम।

अपनी पीठ   आप   ही ठोंकें,

करते  औरों   को   बदनाम।।

'शुभम'  युगों  से जो पाया है,

वह सब अपने  नाम बहाल।।

तार -  तार  भारत   माता के,

वसन   फ़टे  हैं  बिखरे बाल।।


🪴 शुभमस्तु !


१२.०६.२०२१◆५.४५पत नम  मार्तण्डस्य।


🏔️🇮🇳🏔️🇮🇳🏔️🇮🇳🏔️🇮🇳🏔️

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...