रविवार, 20 जून 2021

तेरी राह निहारूँ❤️ [ मुक्तक ]


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✍️ शब्दकार ©

❤️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                   -1-

प्रियतम   तेरी   राह   निहारूँ,

पलक -युगल से नित्य बुहारूँ,

नयन  थके  मम   तकते  राहें,

पर न कभी  साहस  मैं  हारूँ।


                 -2-

दिवस   न चैन  रैन नहिं निंदिया,

भावे  नेंक  न  काजर ,  बिंदिया,

तुम प्रियतम  शृंगार  'शुभम' हो,

चीर  देह    के     मेरे   चिंदिया।


                 -3-

सखी    हमारी    झूला   झूलें,

हम कैसे   निज   प्रीतम  भूलें,

आकर प्रिय तुम पींग बढ़ाओ,

मन ही मन हम प्रमुदित फूलें।


                 -4-

सावन   आया    पड़ी   फुहारें,

वन - उपवन   में   हरी   बहारें,

काम    सताए   आग   लगाए,

तन-मन धधक-धधककर जारें।


                 -5-

प्रियतम - तन  की गंध सुहावे,

सुमन-सुगंध न मन  को भावे,

स्वेद  तुम्हारा   मुझको अमृत,

प्रियाविरहिणी निशिदिन गावे


                 -6-

श्याम   पुकारे   राधा  - राधा,

नेह - मिलन  में  कैसी  बाधा,

वंशी  टेर     मचाए     प्यारी,

योग-मिलन का कान्हा साधा


                  -7-

तुमको प्रणय   पुकार  रहा है,

वर्षों   बीते    बहुत    सहा है,

आकर दो  दर्शन प्रिय साजन,

नयन -  कोर   से नीर बहा है।


🪴 शुभमस्तु !


११.०६.२०२१◆१०.००आरोहणम मार्तण्डस्य।

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