शनिवार, 26 जून 2021

ग़ज़ल 🌴


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✍️ शब्दकार ©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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लबों     की    तिश्नगी  बयां  नहीं    होती।

दिलों   की    तीरगी   बयां  नहीं    होती।।


लगा     करती   है  दिलों  पर चोट   भारी,

ज़लालत   भरी   ज़िंदगी बयां नहीं  होती ।


बड़ी     बेरुखी     से   चले   गए   हैं   वे,

अपनों की बुरी दिल्लगी बयां नहीं होती।


बदलते   वक़्त   ने   लम्हे  जो दिखाए  हैं,

आप   अपनी  आशवी   बयां  नहीं  होती।


'शुभम'   छँटने   लगा  ज़हर अँधेरा  भी,

लबों  से ख़ुद ये काशवी बयां नहीं होती।


तिश्नगी=प्यास।

तीरगी=अँधेरा।

आशवी =धन्य औऱ विजयी।

काशवी=उज्जवलता।


🪴 शुभमस्तु!


२६.०६.२०२१◆१.३०पतनम मार्तण्डस्य।

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