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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
मैं जगत-हित के लिए खिलता रहा,
शाख पर बहुरंग में हिलता रहा,
पुष्प हूँ अपनी महक जग में बिखेरूँ,
बाग, वन में मैं सदा मिलता रहा।।
-2-
कसमसाती हरित घूँघट में कली है,
मुस्कराती पुष्प में कैसी ढली है,
देखकर भँवरे तितलियाँ छा गए,
'शुभम' नयनों में लगे कितनी भली है ।
-3-
रमणियों के केश का गजरा बना मैं,
कंचुकी पर हार लहराता तना मैं,
पुष्प मैं वीरों के सिर पर सोहता हूँ,
देशभक्तों के हृदय होता घना मैं।
-4-
पुष्प , नीबू, आम के फ़ल के लिए हैं,
संतरा ,जामुन सकल कल के लिए हैं,
जूही , बेला, कुंद, गेंदा की महक से,
'शुभम' जो मदहोश जो प्याले पिए हैं।
-5-
देव - देवी शीश पर नव पुष्प चढ़ते,
कर सुगंधें पान वे हैं प्रमन बढ़ते,
खिलती कली उर की सुमन स्पर्श से,
पुष्प बद-आरोप पर सिर न चढ़ते।
🪴 शुभमस्तु !
१०.०६.२०२१◆११.४५ आरोहणम मार्तण्डस्य।
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