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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शब्द ब्रह्म है,
शब्द से सृष्टि का
सृजन है,
समाया है शब्द में काल,
शब्द ही अमृत सदा है
शब्द विष भी रहा है।
शब्द से ही प्रेम
नेह, ममता,प्रणय,
शब्द ही क्रोध,
घृणा का निलय,
शब्द ही स्वर्ग
औऱ नर्क भी वही।
शब्द है संगीत,राग
कविता ,
मधुर सुर ताल,
वही अम्बर और सविता,
नारी का नृत्य भी
शब्दों पर मचलता।
हमारे वेद,उपनिषद ,पुराण
गीता ,रामायण, बहु ग्रन्थ,
शब्द से पूरित अंबर, सागर,
धरती,पंच महाभूत,
सब कुछ शब्द से ही अनुस्यूत।
तोल- तोल कर बोल,
शब्द है अनमोल,
शब्द की महिमा अपार,
शब्द सृष्टि का आधार,
विविध प्रकार,
'शुभम' के शब्द-उद्गार
प्रयास यही कि
रहें उदार,
नमन हर शब्द को
जो दिया माँ सरस्वती ने,
रचा गया छंद में
अथवा मुक्त,
शब्दों में रहता
सदा अनुरक्त,
वही करता रचना में व्यक्त।
🪴 शुभमस्तु!
०८.०६.२०२१◆८.५५आरोहणम मार्तण्डस्य।
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