रविवार, 20 जून 2021

कैसे गीत सुनाएँ! 🎋 [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मानवता   का  मातम  छाया ,

कैसे   गीत     सुनाएँ     हम।

मानव  रक्त  पिए मानव का,

घर -आँगन  में   काला  तम।।


भगवानों   की   पगड़ी   धारे,

चूस   रहे    नर   को   हैवान।

अस्पताल  के   नर्स , डाक्टर,

गुरदे   बेच     रहे     शैतान।।

हवस कनक धन भरने की है,

चहुँ दिशि बढ़ा   हुआ है गम।

मानवता  का  मातम  छाया,

कैसे  गीत     सुनाएँ    हम।।


बाहर  से  वे  दिखते  मानव,

पर   भीतर   दानव    काले।

फँसा शिकंजे में   इंसाँ  को,

मुँह पर श्वेत   मास्क  डालें।।

दिन भर छुरे गलों  पर फेरें,

ठोक  रहे  वे    अपने  खम।

मानवता  का मातम छाया,

कैसे  गीत    सुनाएँ    हम।।


निर्धन  प्राण     बचाए   कैसे,

धनाभाव     आड़े       आए।

निर्ममता  की  हदें   तोड़कर,

दानव   सभी    खड़े   पाए।।

प्राणवायु  को   रोक   मारते,

रोगी  सब   हो   जाएँ  कम।

मानवता का   मातम  छाया,

कैसे    गीत  सुनाएँ    हम।।


श्मशानों  में    लगीं   कतारें,

घर - घर  आँगन   हाहाकार।

नेता  और  प्रशासन    बहरे,

क्या करले चौकस सरकार।।

संजीवनी   कहाँ   से   लाएँ,

निकल  गया  है   सारा दम।

मानवता  का मातम  छाया,

कैसे  गीत    सुनाएँ    हम।।


देशद्रोह   की  सजा  एक ही,

मृत्युदंड      इनको      देना।

नेता ,अधिकारी    या   कोई,

नहीं क्षमा का   शम   लेना।।

अय्यासी   में  जो  निमग्न हैं,

उनका जाए  कभी    न तम।

मानवता  का मातम  छाया,

कैसे  गीत    सुनाएँ    हम।।


सबको  जल्दी   मची   हुई है,

शव  पर  लात   लगा   बढ़ते।

सीढ़ी  बना   आदमी  की  वे,

ऊपर   की   मंजिल   चढ़ते।।

नारी  स्वयं सौंपकर  निजता,

नृत्य , गीत  में रम पम- पम।

मानवता  का   मातम  छाया,

कैसे   गीत     सुनाएँ    हम।।


मानव को अब पशु कहना भी

पशुओं  का   भारी  अपमान। 

हत्या ,    लूट,   चरित्रहीनता, 

के नारी -  नर अब के खान।।

'शुभमआज किस गुण से मानव,

बना   हुआ   नित   एटम - बम।

मानवता  का  मातम छाया,

कैसे   गीत    सुनाएँ   हम।।


🪴 शुभमस्तु !


११.०६.२०२१◆१२.३०पतनम मार्तण्डस्य।

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