मंगलवार, 29 जून 2021

भाता मुझको मेरा गाँव 🏕️ [ बालगीत ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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भाता    मुझको    मेरा   गाँव।

वहाँ  पेड़  की शीतल  छाँव।।


शहरों से   अच्छा   है  प्यारा।

नदिया का   शांत   किनारा।।

जाने को  विचलित   हैं  पाँव।

भाता   मुझको  मेरा   गाँव।।


लोग  गाँव   के   भोले  सीधे।

नहीं  लालची धन  पर गीधे।।

नहीं काग - सी  होती  काँव।

भाता   मुझको   मेरा   गाँव।।


अन्न ,फूल,फल की हो खेती।

गाँव धरा  में  सब्जी   जेती।।

होते  हैं   मनहर  सब  ठाँव।

भाता  मुझको   मेरा   गाँव।।


भेड़ ,  बकरियाँ,  भैंसें, गायें।

देतीं  दूध  जिसे  हम  पाएँ।।

नहीं चाय की  मचती  चाँव।

भाता  मुझको   मेरा  गाँव।।


टर्र - टर्र    हैं   दादुर  करते।

कोयल कूके  मोर विचरते।।

गायें   करती हैं   बाँ - बाँव।

भाता  मुझको  मेरा  गाँव।।


🪴 शुभमस्तु !


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