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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कागज़ पर पौधे लगे,भरे पड़े अख़बार।
धरती बंजर रो रही, सूखी आँसू धार।।
पौधा कर में थामकर,लेकर विशद जुलूस।
पौधारोपण को चले,रक्त मनुज का चूस।।
आँख मारते कैमरे, देख अधर मुस्कान।
सेवक गड्ढे खोदते, नेताजी की शान।
पौधा कर में सोहता, लगे न माटी धूल।
नेताजी बचते फिरें,न हो परस की भूल।।
फ़ोटो में मुस्का रहे, ख़बर छपी अख़बार।
पेड़ लगाया एक ही, सौ का किया प्रचार।।
चमचा स्तुति कर रहे, चमची गाएँ गीत।
पुष्पहार गल सोहते, नेता धरम - पुनीत।।
बंजर ऊसर शेष क्यों,रहते भू पर आज।
पौध प्रेम से रोपते,लोग आँकड़े - बाज।।
पाँच जून को रोप तरु,आया लौट न एक।
देख - भाल पानी नहीं, लोग बड़े हैं नेक।।
पनप सके होते अगर, आरोपण के पेड़।
वर्ष - वर्ष क्यों रेंकती, मेला -नाटक भेड़।।
जंगल सब प्रभु ने दिए,मानव लेता काट।
फ़र्नीचर ईंधन बना,लगी विनाशक - चाट।।
दो रोपे दो सौ कटे,सूखा पड़ा अकाल।
'शुभम'शून्य में ताकता,फूटा मानव -भाल।।
🪴 शुभमस्तु !
०५जून २०२१◆११.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।
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