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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
प्रणय से हम तुम जुड़े हैं,
एक पल भी कब मुड़े हैं,
सृजन का चुम्बक प्रणय ये,
शून्य के नभ में उड़े हैं।
-2-
तुम प्रणय की रागिनी हो,
श्रेय की प्रिय भागिनी हो,
शून्य था उर बिन तुम्हारे,
ओज की सौदामिनी हो।
-3-
जब प्रणय में साथ होते,
जागते हैं हम न सोते,
इतर लोकों में भ्रमण कर,
नव सृजन के बीज बोते।
-4-
तन, हृदय की साधना है,
प्रणय भी आराधना है,
प्रणय से ही नारि- नर हैं,
सृजन की शुभ भावना है।
-5-
दृष्टियाँ जब चार होतीं,
प्रणय का संचार होतीं,
प्राण दो मिल एक होते,
दो गले का हार होतीं।
-6-
प्रणय गूँगा मौन होता,
शब्द भी फिर कौन होता?
बोलता होता प्रणय जो,
लग न पाता गहन गोता।
-7-
प्रणय है तो पास भी आ,
लाज से तू दूर मत जा,
पलक दो झुकने लगीं तव,
है 'शुभम' ये प्रणय -आभा।
🏕️ शुभमस्तु !
०३.०६.२०२१◆९.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।
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