बुधवार, 23 जून 2021

इंद्रधनुष 🌈 [बालकविता ]


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✍️ शब्दकार ©

🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सात   रंग  की   पाँती   सोहे।

वक्र,गगन  में दृग  मन मोहे।।


यह  शुचि इंद्रधनुष कहलाता।

हम सबका वह मन बहलाता।


सुबह  पश्चिमी  नभ  में होता।

संध्या   वेला   पूर्व    उदोता।।


पहला   रँग   है   जैसे  बैंगन।

कहें बैंगनी  घर के सब जन।।


फ़िर नीले   की   आती  बारी।

ज्योंअलसी की पुष्पित क्यारी


आसमान का रँग अब आता।

नयनों को  है कितना भाता।।


हरे रंग का  फ़िर क्या कहना!

हरित विटप का बहता झरना।


नीबू   जैसा  रँग  अति पीला।

नारंगी - सा    वर्ण   रसीला।।


अंतिम  लाल  रंग  मन भाया।

नभ  में इंद्रधनुष शुभ छाया।।


🪴 शुभमस्तु !


२२.०६.२०२१◆११.४५आरोहणम मार्तण्डस्य।

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