रविवार, 20 जून 2021

ग़ज़ल 🪴


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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देश    मेरा    सो    रहा   है।

देख  लो क्या   हो  रहा है!!


कौन    कहता   है   तिरंगा,

तीन  टुकड़े    हो    रहा  है।


रँग   हरा    बद  रूप   नीचे,

अब   तिरंगा   रो   रहा   है।


सोया  हुआ   हिंदू  न जागा,

बीज   खंडित   बो  रहा  हैं।


 मर  रहा   है 'वर्ण'  में   रँग,

अस्मिता निज  खो  रहा है।


रंग    केसरिया    न   बाकी,

रस्म    कोरी    ढो   रहा  है।


सुन 'शुभम'  भावी भयानक,

अश्क   से  मुख  धो रहा  है।


🪴 शुभमस्तु !


१२.०६.२०२१◆४.४५ पतनम मार्तण्डस्य।


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