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✍️ शब्दकार©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पिया मिलन को चली कामिनी।
चमके उज्ज्वल भली दामिनी।।
छनक न जाए रुनझुन पायल,
हौले - हौले बढ़ी भामिनी।
रूठ गए हैं प्रीतम प्यारे,
महक रही ज्यों कली मानिनी।
कभी न मन में आया दूजा,
नहीं हुई तिय छली गामिनी।
'शुभम' पतिव्रत पालन करती,
पावनता से पली कामिनी।
🪴 शुभमस्तु !
२६.०६.२०२१◆३.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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