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[सजल,वृष्टि, घनघोर,लहर,सैलाब]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
भरत- राम की भेंट में,सजल नयन हैं चार।
वाणी दोनों मूक हैं, ग्रीवा में भुजहार।।
सजल मेघ सजने लगे,गरज -तरज घनघोर।
चपला चंचल चाव से,मचा रही अति शोर।।
सावन आया झूमकर, वृष्टि विकट बरजोर।
खेत बाग वन में हुई, शोर मचाएं मोर।।
बिना वृष्टि क्या खेत में, फसल न पैदावार।
ऋतुओं की रानी सजी, बाँटे जल उपहार।।
सावन मास अषाढ़ में,छाए नभ घनघोर।
दिवस -निशा बरसात हो,भीग गया हर पोर।।
श्वेत साँवले मेघ हैं, बरस रहे चहुँ ओर।
प्रमुदित हैं नर -नारियाँ,आच्छादित घनघोर।।
सरिता में क्रीड़ा करें,लहरे लहर विशाल।
भँवर पड़ें गह्वर घने,मानो क्रोध उबाल।।
सघन लहर - आक्रोश में,तरणी का बदहाल।
त्राहि-त्राहि मचने लगी,पावस करे कमाल।।
बहे गाँव जन ढोर भी,विकट चला सैलाब।
रहे न गेह दुकान भी,जल आक्रोशित ताब।।
सफल नहीं शासन हुआ,आया जब सैलाब।
धन - जन बचे न गाँव में,उमड़े सरि तालाब।।
एक में सब
सजल वृष्टि घनघोर है, लहर बनीं सैलाब ।
हरी -भरी धरती हुई, गगन करे आदाब।।
शुभमस्तु !
15.07.2025●11.15प०मा०
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