बुधवार, 16 जुलाई 2025

सजल वृष्टि घनघोर [ दोहा ]

 344 /2025


       

[सजल,वृष्टि, घनघोर,लहर,सैलाब]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक

भरत- राम की भेंट में,सजल नयन हैं चार।

वाणी   दोनों   मूक   हैं, ग्रीवा   में भुजहार।।

सजल मेघ सजने लगे,गरज -तरज घनघोर।

चपला  चंचल  चाव से,मचा रही अति  शोर।।


सावन आया झूमकर, वृष्टि विकट   बरजोर।

खेत   बाग   वन  में हुई, शोर  मचाएं   मोर।।

बिना वृष्टि क्या खेत में, फसल  न पैदावार।

ऋतुओं की रानी  सजी,  बाँटे  जल उपहार।।


सावन  मास  अषाढ़   में,छाए नभ घनघोर।

दिवस -निशा बरसात हो,भीग गया हर पोर।।

श्वेत   साँवले  मेघ  हैं,  बरस रहे चहुँ   ओर।

प्रमुदित हैं नर -नारियाँ,आच्छादित घनघोर।।


सरिता  में  क्रीड़ा  करें,लहरे लहर   विशाल।

भँवर   पड़ें   गह्वर   घने,मानो क्रोध उबाल।।

सघन लहर - आक्रोश में,तरणी का बदहाल।

त्राहि-त्राहि   मचने  लगी,पावस करे कमाल।।


बहे  गाँव   जन ढोर भी,विकट चला सैलाब।

रहे न गेह  दुकान  भी,जल आक्रोशित ताब।।

सफल नहीं  शासन  हुआ,आया जब  सैलाब।

धन - जन   बचे न गाँव  में,उमड़े सरि तालाब।।


               एक में सब

सजल  वृष्टि  घनघोर  है, लहर बनीं  सैलाब ।

हरी -भरी    धरती  हुई,  गगन   करे आदाब।।


शुभमस्तु !


15.07.2025●11.15प०मा०

                  ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...