346/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अपना स्वयं सुधार,आवश्यक सबको यहाँ।
मनुज पूर्णताकार, कौन यहाँ संसार में।।
पहले सुधरे व्यक्ति, करना देश - सुधार तो।
मिलती है शुभ शक्ति,सब सुधरें तो देश को।।
करना देश -सुधार, नेता चीखें मंच पर।
बने ईश -अवतार,निज सुधार में लीन वे।।
मात - पिता का धर्म,संतति के निर्माण में।
करके शोभन कर्म, कर लें आत्म-सुधार वे।।
करते हैं सब लोग,बातें बहुत सुधार की।
फैलाते बहु रोग, नहीं गले निज झाँकते।।
सबका पूर्ण सुधार,करने से ही हो सके।
जैसे सलिल फुहार, थोथी बातें व्यर्थ हैं।।
कोई कभी सुधार, भाषण से होता नहीं।
फिर पूरा संसार, पहले आत्म-सुधार हो।।
पहले करके देख, कथनी से करनी बड़ी।
करे न मीन न मेख,तब ही सर्व सुधार हो।।
बड़बोलापन आम, पर उपदेशी जगत है।
करे न शोभन काम,कैसे व्यक्ति-सुधार हो।।
बड़े न बोले बोल ,हम सुधरें सुधरे जगत।
रहें हृदय को खोल, तोलें तुला सुधार की।।
साबुन रगड़ अबाध,धोना पड़ता वस्त्र को।
पूर्ण व्यक्ति की साध,त्यों सुधार हो व्यक्ति का।।
शुभमस्तु !
17.07.2025●7.30 आ०मा०
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