348/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
ढूँढ़ लो मैं हूँ कहाँ पर
देह में तेरी।
तुम बताते आत्मा का
अर्थ ही अपना
पास मैं रहती सदा
फिर भी लगे सपना
रक्त की हर बूँद में मैं
कर रही फेरी।
देख तो मुझको न पाया
आज तक कोई
मैं सदा जाग्रत रहूँ
अब तक नहीं सोई
जब निकलना हो मुझे
लगती नहीं देरी।
रूप में भौतिक नहीं
परमात्मा जैसी
मैं सदा से ही पहेली
पथिक परदेशी
कब तलक मेरा ठिकाना
कब बजे भेरी।
शुभमस्तु !
17.07.2025●12.15 प०मा०
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