शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

ढूँढ़ लो मैं हूँ कहाँ पर [ नवगीत ]

 348/2025

        

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


ढूँढ़ लो मैं हूँ कहाँ पर

देह में तेरी।


तुम  बताते आत्मा का

अर्थ ही अपना

पास मैं रहती सदा 

फिर भी लगे सपना

रक्त की हर बूँद में मैं

कर रही फेरी।


देख तो मुझको न पाया

आज तक कोई

मैं सदा जाग्रत रहूँ 

अब तक नहीं सोई

जब निकलना हो मुझे

लगती नहीं देरी।


रूप में भौतिक नहीं

परमात्मा जैसी

मैं सदा से ही पहेली

पथिक परदेशी

कब तलक मेरा ठिकाना

कब बजे भेरी।


शुभमस्तु !


17.07.2025●12.15 प०मा०

                 ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...