342 / 2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कुछ तो बचाएँ
पास अपने
सबका नहीं उद्गार कर।
बहुत सर्पीला जमाना
तू समझता
ऋजु इसे
बाड़ काँटों की लगी है
कुण्डलीकृत
सर्प ये
जीभ को
तेरी पकड़ ये
दंश देगा शक्ति भर।
कौन अपना
या पराया
राज से अनजान तू
मधुर बोलेगा
वचन ये
कान में मधु शब्द कू
बस यही
पहचानना है
दुष्ट जन से नित्य डर।
चाहता कोई
न तुझको
तू प्रगति पथ पर चले
आदमी जग का
सदा ही
आदमी को ही छले
काटना वह
चाहता है
तेरे गगन में सबल पर।
शुभमस्तु !
15.07.2025● 7.15 आ०मा०
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