शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

सावन [ कुंडलिया ]

 351/2025

            

                   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

सावन  सुखद  सुहावना,सलिला बहे अबाध।

गरज- गरज बरसे जलद, पूर्ण हुई भू- साध।।

पूर्ण   हुई   भू-साध,  हरी  पहनी शुभ   साड़ी।

कृषक  चले  निज  खेत,साथ में बैल अगाड़ी।।

'शुभम्' हर्ष  की  रेख, नयन सबके मनभावन।

ऋतु रानी बरसात, बरसता निशि दिन सावन।।


                         -2-

पावस   ऋतु   मनभावनी,  बरसे सावन   मास।

नर - नारी   खग  ढोर   सब,लगा रहे  थे  आस।।

लगा  रहे  थे   आस,स्वाति  का प्रेमी    चातक।

तजे  न  प्रण को  लेश, नहीं करता तृण पातक।।

'शुभम्' भक्ति की सीख, मनुज को देता थ्यावस।

बीता  मास   अषाढ़,  आगमित सावन   पावस।।


                         -3-

सावन   आया   झूमकर, पड़ा न झूला   एक।

कजरी  और  मल्हार का, गीत न गाया  नेक।।

गीत  न  गाया  नेक,  लीन   हैं अब ब्रजबाला।

मोबाइल    की  टेक,  दिखातीं गरम मशाला।।

'शुभम्'  नारियाँ  गीत,  नहीं गातीं मनभावन।

अमराई    में   देख,  शून्य  में तकता  सावन।।


                         -4-

सावन    में      दिखती    नहीं, वीरबहूटी   नेक।

नहीं    निकलते    केंचुआ, नहीं  गिजाई   एक।

नहीं      गिजाई     एक,   मात्र   दादुर     टर्राते।

जुगनू   लेकर  टॉर्च, कभी   घर में दिख   जाते।।

चींटे       रेलमपेल,   घूमते   घर   या     आँगन।

बीत  गया  वह काल,अलग होते जब   सावन।।


                         -5-

सावन    में    देखो  भरे, सरिता सागर    ताल।

झर-झर- झर बुँदियाँ झरें,प्रमुदित नारी   बाल।।

प्रमुदित   नारी   बाल,  कृषक  खेतों  पर  जाते।

साथ    लिए  हल - बैल, गीत  गाते मन   भाते।।

'शुभम्'    बाग   में   कूक,सुनाई  देती   पावन।

विरहिन   देखे   बाट, सहज सरसाया   सावन।।

शुभमस्तु !


17.07.2025 ●11.00प०मा०

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