बुधवार, 16 जुलाई 2025

जब तक चलते रहना [ नवगीत ]

 345/2025

      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


तब तक ये दो हाथ-पाँव हैं

जब तक चलते रहना।


चलती इनसे देह समूची

गति को जीवन कहते

ये चलते तो जीवन चलता

अंग सुरक्षित रहते

हाथ पाँव जो गतिमय रहते

पड़े न दुख भी सहना।


पोषण के दो यंत्र संजीवन

विद्युत बल संचार यहाँ

सुदृढ़ हैं यदि हाथ-पाँव तो

तन-मन की हर जीत वहाँ

सागर से ज्यों मिलती सरिता

हर पल- पल ही बहना।


चलना ही इनका जीवन है

जड़ता मृत्यु कराती है

दिल दिमाग यकृत सब चलते

नींद चैन की आती  है

श्रम की रोटी खाते दोनों

झूठ  नहीं ये कहना।


शुभमस्तु !


16.07.2025● 9.15 आ०मा०

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