345/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
तब तक ये दो हाथ-पाँव हैं
जब तक चलते रहना।
चलती इनसे देह समूची
गति को जीवन कहते
ये चलते तो जीवन चलता
अंग सुरक्षित रहते
हाथ पाँव जो गतिमय रहते
पड़े न दुख भी सहना।
पोषण के दो यंत्र संजीवन
विद्युत बल संचार यहाँ
सुदृढ़ हैं यदि हाथ-पाँव तो
तन-मन की हर जीत वहाँ
सागर से ज्यों मिलती सरिता
हर पल- पल ही बहना।
चलना ही इनका जीवन है
जड़ता मृत्यु कराती है
दिल दिमाग यकृत सब चलते
नींद चैन की आती है
श्रम की रोटी खाते दोनों
झूठ नहीं ये कहना।
शुभमस्तु !
16.07.2025● 9.15 आ०मा०
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