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©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अपनी गलती
सहज ही स्वीकार ले
वह आदमी नहीं,
आदमी की
परिभाषा से
परे है ,
वह कुछ और ही हो
पर एक स्वाभाविक
आदमी कदापि नहीं।
स्वीकार लेना
सहज ही
अपराध बोध होगा,
इसलिए तुरंत नकारना
झुठकारना आसान होगा,
आदमी बने रहो
और अपने दुष्कर्म को
झटकारते रहो,
यही तो तेरी आदमियत है,
वरना देवता बन जाए।
आदमी से गलतियाँ
हो भी जाती है
अनजाने में,
कभी- कभी वह
करता भी है
लगता छिपाने में,
पर ये नासूर
एक दिन फूटता ही है,
और दूध का दूध
पानी का पानी
छँट जाता है,
हाँ,मैंने ही किया है
वह कह पाता है।
आदमी और गलती
गलती और आदमी
दोनों का साथ
चोली - दामन का,
यदि आदमी देवता होता
तो कोर्ट कचहरियां
पुलिस नहीं होते,
अब राम राज्य के
अर्थ बदल गए हैं।
शुभमस्तु !
17.07.2025 ●9.00प०मा०
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