शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

ओवरटेकिंग कल्चर

प्रजातंत्र के राजमार्ग पर
दौड़ रहे थे  वाहन घर घर
अपनी गति से बढ़ते चलते 
नहीं किसी को गति से छलते,

पर यह क्या आया सर सर
वाहन चालक करता घर घर
ओवरटेकिंग करने दौड़ा 
जैसे सुरापान कर घोड़ा
सड़क रोंद्ता  उछल-कूदता
अपना डंका रहा पीटता
नई  झपट्टामार  संस्कृति
भले कहो तुम उसको विकृति
पर उसको क्या ?
बस आगे बढ़ना,
अन्यों से भी आगे बढ़ना,
छल -छंदों से कुरसी गहना
अपनाना ओवरटेकिंग कल्चर
एक्सीडेंट भले हो वल्गर,
बड़े बड़ों की विकट उपेक्षा
लफ़्फ़ाजी नारों की शिक्षा
अपमानित कर आगे आया
कीचड़ हाथ सुशोभित पाया
मार -मार कीचड़ वाहन पर
आगे बढ़ा उन्हें आहत कर
चालक वरिष्ठ भौचक्के विस्मित
अटल टाल दिए जैसे थे मृत,
खोई  बड़े -बड़ों की इज्जत
नव चालक ने पाई लज्जत,
उनकी अस्थि - शेष पर करता
राजनीति के कसीदे गढ़ता,
नाम मिटाने का आयोजन
कोरी वाहवाही का वाहन,
ओवरटेकिंग कल्चर ले आया
नाम मिटा अपना लिखवाया,
सभी समझ रहे ये चालें
कितना कब तक मूर्ख बना ले!

है दुर्भाग्य इस प्रजातंत्र का
सड़क कूटता मोह-मंत्र सा,
आगे वाले छोड़ दिए सब
गुरु बेइज्जत होते हैं अब,
रहना है तो चुप ही बैठो
छोड़ वरिष्ठता दो, मत ऐंठो,
वरना क्या हो हस्र तुम्हारा
वक्त आज का सिर्फ हमारा,
नींव के पत्थर नींव में अच्छे
केवल मैं ही ऊपर सजते,
ओवरटेकिंग कल्चर आया
 बाप गुरु को धता बताया,
बने हो संस्कृति के ठेकेदार
पर बेकायदे सब बेकार।

ये आतंकी संस्कृति  तेरी
शीघ्र बजेगी फिर रणभेरी
विकट परीक्षा होगी तेरी,
सभी लड़ेंगे कुरसी मेरी
अब न चलेगी ओवरटेकिंग
चलो सड़क पर करले रेसिंग।

🌷शुभमस्तु !

✍🏼रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप "शुभम"

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